अतुलनीय औषधि हरड़

हरड़ या हरीत को हमारे देश में प्रायः सभी जानते हैं। बंगाल में यह देव-देवियों की पूजा-सामग्री के आवश्यक अंग के रूप में व्यवहृत होती है। शायद इसलिए क्यों कि इसका औषधीय गुण सबसे महत्वपूर्ण हैं। हरड़ को अंग्रेजी में चेबुलिक माइरोवेलन या इन्कनट (Inknut) कहते हैं।


औषधीय जगत में इसे टर्मिनोलिया चेबुला कहा जाता है। - आयुर्वेद में हरड़ के विषय में कहा गया है कि यह मधुर अम्लतिक्त कटु कषाय- इन पाँच रसों से युक्त होती है। यह रुक्ष, अग्निदीपा कारक, मेधाजनक, आँख की बीमारी में उपकारी है। श्वाँस, खाँसी, अर्श, कुष्ठ, विषय ज्वारादि में इसका प्रयोग लाभदायक है। गुर्दे या मूत्र सम्बन्धी रोगों का विनाश करती है।


हरड़ का पेड़ आकार में बहुत बड़ा होता है। यह भारतवर्ष में प्रायः हर स्थान पर ही मिलता है। इसकी उपज सबसे अधिक उत्तर पूर्वी भारत, मध्यभारत तथा बम्बई के कुछ दक्षिणी-भाग में होती है। आयुर्वेद के अनुसार इसकी सात जातियाँ होती है, परन्तु आजकल चार जाति ही मुख्य रूप से मिलती हैं। ये चार शर्बरी हरड़, रंगरी हरड़, बाला हरड़ तथा जवा हरड़ है। प्रत्येक जाति अपना भिन्न-भिन्न आकार और विशेष गुण रखती है। जैसे शर्बरी हरड़, रंगरी हरड़ बाला हरड़ तथा जवा हरड़ है। प्रत्येक जाति अपना भिन्न-भिन्न आकार और विशेष गुण रखती है। जैसी शर्बरी हरड़ बड़ी धूसर रंग की दो इंच लम्बी होती है। यह आँख के रोग के लिये काम आती है। जवा हरड़ सबसे छोटी तथा काली होती है। इसमें पित्त, कफ और कोष्ठबद्धता को नाश करने का विशेष गुण होता है। हरड़ में अम्ल रस होने के कारण यह वायुनाशक होता है, बढ़े हुए प्लीहा और यकृत में इसका प्रयोग लाभदायक है। हरड़ बहेड़ा और आँवला को रात में किसी साफ बर्तन (काँच या मिट्टी का हो तो अच्छा है) में भिगो दें और प्रातःकाल उसके पानी को छानकर नियमित रूप से आँखे धोने पर आँख सम्बन्धी रोग नहीं होते और मन्द दृष्टि रोग दूर हो जाता है।


हरड़ के चूर्ण को आँवला बहेड़ा, गोलमिर्च, सौंफ के साथ सेवन करने से कोष्ठबद्धता (कब्ज) दूर होता है और खाना पचाने की शक्ति बढ़ती है।