भारतीय पूजन पद्धति धार्मिक ही नहीं वैज्ञानिक भी

चरणामृत पान करने का रहस्य


पूजन के पश्चात् भगवान का चरणामृत लेना भी अथपूर्ण और लाभप्रद है। निम्नांकित तथ्य ध्याननीय हैं-


(क) पाप-व्याधियों को दूर करने के लिए भगवान् के चरणों का अमृत रूप जल सर्वोत्तम औषधि है। उसमें तुलसी दस का सम्मिश्रण होना चाहिये और वह जल, सरसों का दाना जिसमें डूब सके इतने प्रमाण में होना चाहिये ।


(ख) जैसे विषघ्न औषधि 1 के सेवन से शररी का विषय नष्ट हो जाता है। इसी प्रकार चरणामृत समस्त पातकों का नाश करता है।


(ग) अकाल मृत्यु दूर करता है, सब रोगों को नष्ट करता है और पवित्र चरणामृत सब पापों का भी क्षय करता है।


(घ) तुलसी की गन्ध से सुवासित वायु जहां घुमती है, वहां तक दिशा और विदिशाओं को पवित्र करता है औरउद्भित, स्वेदज, अण्डज तथा जरायुज चारों प्रकार के प्राणियों को प्रीणन करता है।


(ङ) नित्य भगवान का चरणामृत पीना चाहिये भगवत्प्रसाद खाना चाहिये। शेष पुष्प चन्दन आदि द्रव्य शिरोधर्य करने चाहिये-यह वैदिक अनुशासन है। (चवलसी के स्पर्श मात्र से मनुष्यों की व्याधि नष्ट हो जाती है।


बासी भोग खाने का रहस्य


शीतला की प्रसन्नता के लिए एक समय का पका यातयाम, तेल के गुलगुले आदि पकवान चढ़ाने और खाने का प्रायः सर्वत्र प्रचार है । सिन्ध, मुलतान और बहावलपुर स्टेट के हिन्दू तो प्रत्येक सोमवार को बासी बरूठा खाते थे। यद्यपि साध रणतया पर्युषित अन्न भक्षण से शैथिल्यभी बढ़ता है। यह अनुभवी लोगों का कहना है कि रक्त की अनावश्यक बढ़ती हुई प्रगति को रोकने में अर्थात रक्त दबाव (Blood Pressure) का वैलेंस ठीक रखने के लिये तेल में पका बासी स्निग्ध पक्वान्न भोजन बहुत हितप्रद सिद्ध होता है। साट रण स्थिति में जो शैथिल्य दूषण है, शीतला प्रकोष में वही वरदान बर जाता है। यह सभी जानते हैं कि उक्त तीनों देवियों की पूजा उपहार केवल चाण्डालादि को प्रदान किया जाता है और उक्त देवियों के मनिदर प्रायः इन्हीं लोगों की सम्पत्ति समझे जाते हैं सो इस प्रकार शीतला पूजन आपाततः हरिजन कहे जाने वाले अन्त्यजनों के नकद उद्धार की भी एक अनुकरणीय परमात उदात्त प्रणाली सिद्ध होती है।