गंगा सी पावन है हिन्दी

वेदों के आंगन से निकली, ऋषियों की वाणी है हिन्दी ।


सरस प्रवाहित होती रहती, गंगा सी पावन है हिन्दी ।।


अलंकार छन्दों की भाषा, भारत का श्रृंगार है हिन्दी।


रस से सदा सराबोर रहती है, जीवन की तुलसी है हिन्दी ।।


कवियों के गीतों की धारा, भावों का उद्गार है हिन्दी।


पतझर में भी मधुमास सी, कोमल सरस सुहावन हिन्दी ।।


संस्कृति की रक्षक है हिन्दी, संस्कार की जननी हिन्दी।


बड़ा ही शब्द कोष है, जन-जन में व्यापक है हिन्दी ।।


सरल सहस सद्भाव है हिन्दी, जीवन की मुस्कान है हिन्दी ।


सीमित नहीं क्षेत्र है इसका, प्रान्त-प्रान्त की भाषा हिन्दी ।।


पीढ़ी दर पीढ़ी मिलता है, जिसका ज्ञान वही है हिन्दी।


नाटक गीत उपन्यासों में, रची-बसी है देखो हिन्दी ।।


चाहत जब होगी सीखोगे, अंधियारा सब छंट जायेगा।


भरे ज्ञान का नया उजाला, माँ समान है भाषा हिन्दी ।।