ग्रह मंडल में चंद्रमा तेज गति वाला और शीघ्र परिणाम देने वाला ग्रह है

परिणाम चन्द्रमा ग्रह मंडल में तेज गत वाला और शीघ्र परिणाम देने वाला ग्रह है। नैतिक परिणामों को चंद्रमा ही सर्वाधिक प्रभावित करता है। चंद्र मन का स्वामी है और स्त्री जाति का प्रतीक है। चंद्रमा भगवान शिव के शीर्ष पर विराजमान रहते हैं। वष राशि में 3 अंश पर ये उच्च के एवं वृश्चिक राशि में नीच के कहलाते हैं। कुंडली के (लग्न) चतुर्थ भाव में ये सर्वाधिक प्रभावी होते हैं। जहां चंद्रमा की दृष्टि यदि क्रूर ग्रहों यथा राहु, केतु, शनि आदि पर पड़ती है तो ये ग्रह भी फायदा पहुंचाने लगते हैं। चंद्रमा के साथ गुरु या सूर्य के युति होती है तो यह सोने में सुहागा वाली कहावत को चरितार्थ करते हैं। चंद्र प्रधान व्यक्ति शीतल स्वभाव मृदुभाषी और व्यवहार कुशल होते हैं। वाद-विवाद से ऐसे व्यक्ति का दूर-दूर तक नाता नहीं होता है। शुक्र के साथ चंद्रमा का संयोग जातक को उच्च स्तरीय कलाकार बनाता हैं। नक्षत्र मंडल में इन्हें मंत्री की उपाधि प्रदान की गई है। शुक्ल के चंद्रमा उत्तम एवं प्रबल -तो कुष्ण पक्ष के चंद्रमा कमजोर माने परिणाम देने जाते हैं। शुक्ल पक्ष का चन्द्रमा यदि कुंडली के द्वादश भाव में हो तो भी शुभफलदायी होते हैं। उच्च के चंद्रमा यदि गलत स्थान में भी बैठे हो तो शुभ फलदाई होते हैं अष्टम भाव में जातक की काल से भी रक्षा करते हैं। यदि किसी की कुंडली में चंद्रमा क्षीण हो पाप ग्रहों से घिरे हों, नीच के हो तो ये शुभ फलदाई नहीं होते और जातक विपत्तियों से घिर जाता हैं। चंद्रमा के अशुभ फलदाई होने पर निम्न परिणाम प्रायः सामने आते हैं। आतंक मानसिक रूप से अस्त-व्यस्त हो जाता है और निरंतर उग्रता का प्रदर्शन करता है। घर में फलों वाले पेंड सूख जाते हैं, दुग्ध - स्रोत बाधित होते हैं। जल स्रोत भी सूख जाते हैं। माता एवं पत्नी से संबंध असामान्य होते हैं। कमजोर चंद्रमा में कामशक्ति का हास, पीलिया, स्मृति-दोष, नसों की बीमारी एवं जल संबंधी रोग समयसमय पर जातक को परेशान करते रहते हैं।


पूजा :- शिवलिंग का पूजन शक्ररा मिश्रित दूध से रोज करना चाहिए। उत्तर-पूर्व की ओर मुख करके सामने है चौकी पर सफेद वस्त्र और आधा किलो चावल और चंद्र यंत्र रखकर मोती या स्फटिक माला से ऊं श्रां श्री श्रौं सः चंद्रमसै नमः मंत्र की 12 माला या चंद्र गायत्री मंत्र ऊँ क्षीर पुत्राय विद्हे, अमृत तत्वायै धीमहि तन्नो चंद्रः प्रचोद्यात की 5 माला नित्य जपनी चाहिए। चंद्र यंत्र भोजनपत्र पर तैयार करें या विज्ञ विद्वान से तैयार करा लें।