हिन्दू धर्म के ग्रंथों का परिचय

परन्त दिनकों को अयेक धर्म ग्रंथ के हिन्दुओं के अनेक धर्म ग्रंथ हैं परन्तु इनके अपौरूषेय वेद सबके आदि स्रोत और आधार हैं। इन ग्रंथों के मुख्य भाग ये हैं-(1) वेद (2) वेदाड़ (3) उपवेद (4) पुराण और ऐतिहासिक ग्रंथ (5) स्मृति (6) दर्शन (7) निबन्ध (8) आगम और (9) विविध ग्रंथ।


1. वेद- वेद संहिताएं चार हैं। इनमें से ऋग्वेद में 10552, यजुर्वेद में 1875 अथर्ववेद में 5977 और सामवेद में 1875 मंत्रों सहित चारों वेदों में कुल 20379 मंत्र हैं। वेदों के सत्यार्थ को समझने, यज्ञों में उनकी प्रयोग विधि जानने, आध्यात्मिक ज्ञान की प्राप्ति तथा उनकी सुरक्षा के लिए ऋषियों द्वारा रचित वेद सम्बन्धी ग्रंथों के छः भाग ये हैं-ब्राह्मण ग्रंथ, आरण्यक, उपनिषद, सूत्रग्रंथ, प्रातिशाख्य और अनुक्रमणी।


(अ) ब्राह्मण ग्रंथ- ये ग्रंथ वेद मंत्रों के अर्थ और उनकी यों में प्रयोगविधि बताते हैं तथा प्रत्येक वेद के अलग- अलग ब्राह्मण ग्रंथ हैं जैसे ऋग्वेद के ऐतरेय और कोषीतकी अथवा शांखायन, यजुर्वेद के तैत्तिरीय और शतपथ, अथर्ववेद का गोपथ और सामवेद का ताण्ड्य ब्राह्मण मुख्य हैं। (आ) आरण्यक- ये अरण्य या वन जैसे निर्जन शान्त स्थान में पढ़ने हिन्दू धर्म योग्य ब्रह्म विधा सम्बन्धी ग्रंथ हैं जो कि अधिकांशतः ब्राह्मण ग्रंथों के अंग हैं।


(इ) उपनिषद्- इसका अर्थ है ईश्वर के पास पहुंचाने वाला ग्रंथ। इनमें आध्यात्मिक विद्या और ईश्वर जीव सम्बन्धी का विवेचन किया गया है। वैसे तो 220 उपनिषदों का उल्लेख मिलता है परन्तु इनमें से जिन मुख्य ग्यारह उपनिषदों पर आध शंकराचार्य का भाष्य मिलता है वे हैं- ईश, केन, कठ, प्रश्नन, मुण्डक, माण्डूक्य, ऐतरेय, तैत्तिरीय, श्वेताश्वर, छान्दोग्य और ब्रहदारण्यक।


(ई) सूत्र ग्रंथ- इनके श्रौत सूत्र, गृहा सूत्र और धर्म सूत्र तीन भाग हैं। इनमें वेदों के कर्म काण्ड को स्पष्ट किया गया है तथा प्रत्येक वेद के अलग-अलग सूत्र गंथ हैं। इन्हें ऋग्वेद के आश्वालयन और कोषीतकी, यजुर्वेद के आपस्तम्ब, कात्यायन और बोधायन, अथर्ववेद के बेतान व कौशिक तथा सामवेद के जैमिनीय, खादिर और गौतम मुख्य सूत्र ग्रंथ हैं।


(उ) प्रतिशाख्य- ये वैदिक व्याकरण हैं तथा चारों वेदों के अलग-अलग प्राति शाख्य हैं। इनमें के ग्रंथों का से कात्यायन का शुल्बसूत्र विज्ञान की दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं। (ऊ) अनुक्रमणी- ये एक प्रकार के सूची ग्रंथ हैं जिनका उद्देश्य वेदों की मौलिकता, सुरक्षा एवं वेदार्थ विवेचन करना है। इनमें वेद मंत्रों के देवता, ऋषि, छन्द, स्वर आदि की दृष्टि से सूचियां हैं। इनमें से ऋग्वेद को आर्षानुक्रमणी, छन्दोउनुक्रमणी, देवतानुक्रमा, अनुवाकानुक्रमणी, सर्वानुक्रमणी, वृहदेवत, ऋगविज्ञान और ऋक्प्रातिशाख्य और यजुर्वेद की आत्रेयानुक्रमणी चारायणीयानुक्रमणी, कात्यानुक्रमणी और प्रातिशाख्यसूत्र मुख्य हैं।


2. वेदांग- मानव शरीर के समान वेद के भी छः मुख्य अंग माने गए हैं। तदनुसार वेद की आंख है ज्योतिष कान हैं-निरूक्त, नाक हैशिक्षा, मुंह है व्याकरण, हाथ हैं कल्प और छन्द पैर हैं।


(अ) शिक्षा- इन ग्रंथों में वेद मंत्रों के स्वर, अक्षर, मात्रा तथा उच्चारण का विवेचन किया गया है। इनमें ऋग्वेद की पाणिनीय शिक्षा, यजुर्वेद की व्यास एवं याश्रयवल्क्य शिक्षा ग्रंथ, अथर्ववेद की माण्ड्की शिक्षा और सामवेद की गौतमी, लोमशी परिचय और नारदीय शिक्षा मुख्य हैं। (आ) व्याकरण- इसका काम मुख्यतया वैदिक भाषा के नियम तय करना है। इन ग्रंथों में पाणिनी व्याय व्याकरण पर महर्षि पतञ्जलि का महाभाष्य मुख्य है। (इ) निरूक्त- ये वेदों की व्याख्या के नियम बतलाने वाले कोश हैं जिनमें यास्काचार्य का निरूक्त मुख्य है।