देश में लाखों युवा दंपति आज के दौर में मशीनी तौर पर विवाह बंधन में बंध रहे हैं, बगैर यह जाने-समझे कि दांपत्य के प्रत्येक कर्मकांड से दो प्राणियों का बंधन और मजबूत हो जाता है, जो आजीवन सुरक्षित भी रहता है। हाल में एक युवा ब्रिटिश वर, जॉन वैलेरो ने एक भारतीय दुल्हन के साथ-साथ हिंदू विवाह पद्धति को अपनाया, क्योंकि इसमें स्थायित्व का भाव और समृद्ध धरोहर का अहसास रहता है। यूँ तो विश्वभर में शादी की रस्में और कसमें लाजवाब हैं, लेकिन हिंदू विवाह में सप्तपदी का विशेष सामाजिक सरोकर व महत्व है। जयमाल- जयमाल का अर्थ है कि दुल्हा-दुल्हन एक-दूजे को पंसद करते हैं, वरण करते (अपनाते) हैं तथा सम्मान भी करते हैं। जब दुल्हन अपने गले में जयमाल स्वीकार करती है तो इसका मतलब हुआ कि उसने अपनी नयी जिन्दगी, नया घर, नया परिवार और जीवन साथी संग नया संबंध स्वीकार किया। वर भी अपनी दौलत और उच्चाकांक्षाओं में उसे साक्षी मान लेता है तथा गृहस्थी चलाने में और अपने प्रत्येक ख्वाव और हकीकत तथा खुद को पहचानने में उसे सहभागी बनाता है। इन्हीं उद्देश्यों की प्राप्ति को नया नाम दिया गया है- धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष।
कन्यादान - हिंदू विवाह जिन तीन रस्मों के बिना वैद्य नहीं माना जाता, जयमाल उनमें से एक है। शेष दो रस्में हैं- कन्यादान व सप्तपदी (सात फेरे)। विवाह की पूर्णता व शुचिता के लिए कन्यादान दूसरी रस्म है। धर्म के आधार पर हिंदूत्व में प्रकृति को साक्षी मानते हुए दांपत्य बंधन को भी पांच महाद्वीपों, दसों दिशाओं, महासागरों एवं नदियों तथा प्रकृति के अन्य पक्षों में पवित्रता की आकांक्षा रहती है। विवाह बंधन को प्राकृतिक रूप देने के उद्देश्य से ही वर-कन्या के बीच सूत या रेशम के धागे या उनसे बने वस्त्र की गाँठ बाँधी जाती है। ये सभी वस्तुएं विवाह समारोह में शामिल रहती हैं तथा विवाह की साक्षी रहते हुए वर-कन्या को आशीष भी प्रदान करती हैं। कन्या के अभिभावकों द्वारा कन्यादान या हस्तमिलाप की रस्म इसलिए सम्पन्न करायी जाती हैं ताकि जिस वर के हाथ में वे बेटी का हाथ दे रहे हैं उसके साथ रहने की सभी रस्में कन्या को मंजूर हैं। कन्या की माँ गंगाजल अथवा कोई भी पवित्र जल तुलसी की पत्ती के साथ वर-कन्या के हाथों में हाथ पर डालती है तो इसका मतलब कि वर- कन्या अब सदा के लिए साथ-साथ हैं।
सात फेरे- शादी में सबसे महत्वपूर्ण रस्म है सप्तपदी, जिसके पूरे होते ही किसी दम्पत्ति का विवाह सम्पूर्ण और पूरी तरह वैधानिक मान लिया जाता है। हिंदू विवाह कानून के मुताबिक सप्तपदी या सात फेरे इसलिए भी जरूरी हैं ताकि दंपति शादी की हर एक शर्त को अक्षरशः स्वीकार करें। जॉन को ये शर्ते अथवा संकल्प बेहद रुचिकर लगे। जॉन का कहना है कि मैं अपनी दुल्हन संग लिए गए हर एक फेरे को उनके मूलभाव के अनुरूप निभाना चाहता हूँ। इन सात वचनों को समझ अन्य भावी दुल्हा- दुल्हन भी अपनी शादी का कुछ अधिक आनंद उठा सकेंगे। यहां संस्कृत में श्लोक व उनके भावार्थ दिए जा रहे हैं-
ओम् इषा एकपदी भव- हम यह पहला फेरा साथ-साथ लेते हुए वचन देते हैं कि हम हर काम में एक- दूसरे का ध्यान पूरे प्रेम, समर्पण, आदर, सहयोग के साथ आजीवन करते रहेंगे।
ओम् उजे द्विपदी भव- इस दूसरेवैद्य नहीं माना फेरे में हम यह निश्चय करते हैं कि दोनों साथ-साथ आगे बढ़ेंगे। हम न केवल एक-दूजे को स्वस्थ, सुदृढ़ व संतुलित रखने में सहयोग देंगे, बल्कि मानसिक एवं आत्मिक बल भी प्रदान करते हुए अपने परिवार और इस विश्व के कल्याण में अपनी ऊर्जा व्यय करेंगे।
ओम् रायस्पोष्य त्रिपटी भव-
रायस्पोष्य त्रिपटी भव तीसरा फेरा लेकर हम यह वचन देते हैं कि अपनी संपत्ति की रक्षा करते हुए सबके कल्याण के लिए समृद्धि का वातावरण बनाएंगे। हम अपने किसी काम में स्वार्थ नहीं आने देंगे, बल्कि राष्ट्रहित को सर्वोपरि मानेंगे।
ओम् मयोभ्याय चतुष्पदी भव-
चौथे फेरे में हम संकल्प लेते हैं कि आजन्म एक-दूसरे के सहयोगी रहेंगे और खासतौर पर हम पति-पत्नी के बीच खुशी और सामंजस्य बनाए रखेंगे।
ओम प्रजाभ्यह पंचपदी भव- पांचवें फेरे में संकल्प लेते हैं कि हम स्वस्थ, दीर्घजीवी संतानों को जन्म देंगे और इस तरह पालन- पोषण करेंगे ताकि वे परिवार, समाज और राष्ट्र की अमूल्य धरोहर सावित हों।
ओम् ऋतुभ्यः षष्ठपदी भव- इस छठे फेरे में हम संकल्प लेते हैं.जाता है कि प्रत्येक उत्तरदायित्व साथ-साथ पूरा करेंगे ओर एक-दूसरे का साथ निभाते हुए सबके प्रति कर्तव्यों का नर्वाह करेंगे।
ओम् सखे सप्तपदी भव-
इस सातवें और अंतिम फेरे में हम वचन देते हैं कि हम आजीवन साथी और सहयोगी बनकर रहेंगे।
सामान्यतः यह वचन भराए जाते हैं। गृहस्थी के निर्माण और संस्कारवान संतान की प्राप्ति के लिए। परिवार और उसके मूल्यों का आदर, बुजुर्गों एवं विद्वानों का आदर, दुःख-सुख, उतार-चढ़ाव में साथ-साथ रहने के उद्देश्य से बने हैं ये संकल्प। हिन्दु विवाह की रस्में अलगअलग क्षेत्र और समुदाय में अलगअलग हो सकती हैं किंतु मूल भावना सबमें समान है और सब की सब आज भी सार्थक हैं तथा हर उम्र के व्यक्ति पर प्रभावी भी पासी वजह से जॉन ने हाल में हिंदू रीति से विवाह किया दंपति एक-दूजे के बराबर आ जाते हैं और परिवार, समाज और राष्ट्र के प्रति अपने दायित्वों का निर्वाह बरावरी से करते हैं। आज के स्वार्थपरक भौतिकतावादी जगत में इन वचनों का कोई सानी नहीं।