केदारनाथ में जल प्रलय की करुण कहानी

कुपित हुये महादेव महाप्रभु, क्षणभर में घोर विनाश हो गया।


हिमगिरि पर आकोष देखकर, सारा विश्व उदास हो गया।।


मानवता ने योग भूमि का, भोगों में उपयोग किया,का, 


व्यापारी व्यभिचारी छाये, मनवान्छित उद्योग किया,


पुण्यभूमि का पावन जनपद व्यक्तिगत उल्लास हो गया।


कुपित हुये महादेव महाप्रभु, क्षणभर में घोर विनाश हो गया।।


                          महिमामयी महागोरी माँ, जिन भवनों में वास करें,


                         अपनी ममतामय क्षमता से, जग का विमल विनाश करें,


                         उस चिन्तामणि भवन में, सबका भोगविला हो गया।


                         कुपित हुये महादेव महाप्रभु, क्षणभर में घोर विनाश हो गया।।


योगी-यत्ति-महामुनि ध्यानी, जहाँ ईश को ध्याते हैं,


परम तपस्वी महादेव का, मन भर ध्यान लगाते हैं,


कोलाहल करने वालों का, स्थायी वहाँ निवास हो गया।


कुपित हुये महादेव महाप्रभु, क्षणभर में घोर विनाश हो गया।।


                           ढोंगी जन बाघम्बर घोर, सुट्टे वहाँ बना बैठे,


                           आश्रम का आदर्श त्यागकर, निज दुकान सजा बैठे,


                           व्यापारों का केन्द्र बन गया, मर्यादा का नाश हो गया।


                           कुपित हुये महादेव महाप्रभु, क्षणभर में घोर विनाश हो गया।।


 बद्री-श्री केदार भवन में, शिव कैलास निवासी हैं,


जग रचना-जग के उन्नायक, जगविनाश अविनाशी हैं,


पलभर में प्रलयंकारी है, यह सबको विश्वास हो गया।


कुपित हुये महादेव महाप्रभु, क्षणभर में घोर विनाश हो गया।।


                             देवों के इस महाभवन में, कोसों सुरंग खोद डाली,


                             भोग विलाशी महाजनों ने, हिमगिरि नींव हिला डाली,


                             मानव की यह देख धृष्टता, हिमगिरि हाय उदास हो गया।


                             कुपित हुये महादेव महाप्रभु, क्षण में घोर महाविनाश हो गया।।


परजन्मों ने कोप दिखाया, पल में प्रलय मचा डाली,


मानव-मानवता की रचना, गंगा बीच बहा डाली,


मृतकों के अम्बार लग ये, सब प्रयास खल्लास हो गया।


कुपित हुये महादेव महाप्रभु, क्षणभर में घोर विनाश हो गया।।


                          गंगा को गन्दी करने का, दुष्परिणाम निराला है,


                          निर्मलता का रूप जाह्नवी, भारत माँ की माला है,


                          गंगा-यमुना-सरस्वती का, उज्वल स्वयं प्रयास हो गया।


                          कुपित हुये महादेव महाप्रभु, क्षणभर में घोर विनाश हो गया।।


संसारी आशक्ति त्यागकर, जो जन यहाँ पधारे हैं,


महाघोर पावन तप करके, सीधा स्वर्ग सिधारे हैं,


तपस्थली की गरिमा का यह, अजर अमिट इतिहास हो गया।


कुपित हुये महादेव महाप्रभु, क्षणभर में घोर विनाश हो गया।।


                         शिव-शक्ति का महात्मय, इस पर देव लुभाते हैं,


                         शंकर की अनुकम्पा पाकर, मन चाहे फल पाते हैं,


                        जिसने शिव अनुकम्पा पाई, उसके हृदय प्रकाश हो गया।


                        कुपित हुये महादेव महाप्रभु, क्षणभर में घोर विनाश हो गया।।


सकल त्रासदी मेटो मनकी, अतुल भ्रमित विश्वास भरो,


भुक्ति-मुक्ति-शक्ति के दाता, भूल मत अधिक उदास करो,


मंगलमय कर दो धरती को, बहुत अधिक संत्रास हो गया।


कुपित हुये महादेव महाप्रभु, क्षणभर में घोर विनाश हो गया।।


                         शिव-शक्ति से यही वन्दना, जग का शुभ कल्याण करें,


                         अपराधों को विस्मृत करे, अखिल विश्व उत्थान करें,


                         सकल सिद्धियाँ पाई उसने, शिव चरणों का दास हो गया।


                         कुपित हुये महादेव महाप्रभु, क्षणभर में घोर विनाश हो गया।।