महर्षि वाल्मीकि वर्णित रामायण के अनुसार श्री राम के निर्देशानुसार सीता लक्ष्मण तथा सुमंत की रथयात्रा का प्रथम रात्रि विश्राम गोमतीतर स्थित आश्रम में हुआ था (रामायण 7/46/19) दूसरे दिन प्रातः यात्रा प्रारम्भ करके दोपहर गंगा तट से नाव द्वारा लक्ष्मण ने सीता को महर्षि वाल्मीकि आश्रम के पास पहुचाया था। वापसी यात्रा में तीसरे दिन का रात्रि विश्राम कोरिनी नदी तट पर था। तत्पश्चात चतुर्थ दिन दोपहर सुमंत्र के साथ लक्ष्मण का रथ अयोध्या पहुंच गया। रामानुज शत्रुघ्न के दो दिन के पड़ाव में पश्चात महर्षि वाल्मीकि के आश्रम में रात्रि निवास कर मथुरा की यात्रा की थी। जिस दिन शत्रुघ्न वाल्मीकि आश्रम में रूके उसी दिन । लवकुश का जन्म हुआ। मथुरा विजय के पश्चात् 12 वर्ष के बाद जब शत्रुघ्न ने वापसी यात्रा की तो उन्होंने लवकुश के द्वारा गाई जा रही रामायण सुनी।
श्री राम के नैमिषारण्य में आयोजित अश्वमेध यज्ञ में महर्षि वाल्मीकि, लवकुश तथा सीता भी पधारे थे। अतः सीताजी का वनवास स्थल ण्वम् लवकुश जन्म भूमि इसी क्षेत्र में गंगातट पर प्रमाणित होती है। सम्पूर्ण भारत में 25 से अधिक वाल्मीकि आश्रमों में से केवल दो आश्रम गंगा तट पर हैं। प्रथम ब्रह्मावती बैकूट कानपुर गंगा के दाथज तट पर तथा दूसरा सीताकुण्ड प्रयाग काशी मार्ग पर उत्तर तट पर पहुँच कर नाव से गंगा पार करके लक्ष्मण वाल्मीकि आश्रम गए थे। अतः महर्षि वाल्मीकि की जन्म भूमि बैला रूदपुर घनश्यामपुर वाया चौबेपुर रूदपुर घनश्यामपुर वाया चौबेपुर कानपुर के पास स्थित ब्रह्मावती बिठूर ही लवकुश जन्म भूमि है।