नशा ये ऐसा दर्पण है जो मनुष्य की शक्ति का नाश करता है।

मनुष्य अनन्त शक्ति का स्वामी है। यह कोई आलंकारिक या अतिश्योक्तिपूर्ण भाषा नहीं है । मनुष्य के पास जिस प्रकार का मस्तिष्क, नाड़ीतंत्र तथा ग्रंथितंत्र है वे उसे अन्य जीवों से अतिशय शक्तिशाली बनाते हैं । यों पशु बल के सामने मनुष्य कमजोर दिखाई देता है। पर असली सत्य यह हैं कि मनुष्य के शरीर में इतनी ताकत है कि पशु उसके सामने टिक ही नहीं सकता। चेतना का विकास तो मनुष्य को अतिशायी बनाता ही है पर शरीर की दृष्टि से भी मनुष्य केवल अपनी अतिशयता को नहीं पहचान पा रहा है अपितु उसका दुरुपयोग भी कर रहा है । नशा एक ऐसा ही दुर्गुण है जिससे मनुष्य अपनी शक्ति का विनाश कर रहा है। यों नशा सदा ही विद्यमान रहा है, पर आज के युग में पैसे की दौड़ में जिस प्रकार की नशीली दवाइयों का उत्पादन कर रहा है वह बड़ा भयंकर है। अपराध और नशे का ऐसा अविनाभावी सम्बन्ध है कि उसे तोड़ पाना बहुत कठिन बात है इसीलिए आज बढ़ते हुए अपराधों में नशा अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।


यों तो चाय भी एक प्रकार का नशा है, पर असली नशा तम्बाकू से शुरू होकर शराब और नशीली दवाइयों तक पहुंच कर इतना विनाशकारी बन गया है कि हर विकसित एवं विकासशील राष्ट्रों के लिए एक समस्या बन गया है। नशा तथा अपराध दुनिया की उन दो चार समस्याओं में एक प्रमुख समस्या है जिससे हर सरकारों के द्वारा लड़ा जाना भी कठिन प्रतीत हो रहा है। बल्कि सच तो यह है कि सरकारी मशीनरी में ही कहीं ऐसा छिद्र होता है कि नशा उससे आगे बढ़ने का अपना रास्ता साफ कर लेता है । नशा चाहे सिगरेट का हो या कोकीन का, वह मनुष्य के अंदर जो कुछ अच्छा होता है उसे छीन लेता है।


नशा मनुष्य के चरित्र को विघटित कर देता है। जिन लोगों को नशे की आदत पड़ जाती है वे नशीले द्रव्य को एक खुराक के लिए किसी भी आदमी के सामने गिड़गिड़ा सकते हैं। आदमी छोटा हो या बड़ा उसे अपनी मान-मर्यादा का ख्यात नहीं रहता । वह अपने ही घर में अपनी पत्नी अपने बच्चों के सामने भी झूठ बोल सकता है। स्मगलिंग के मामले में मुख्य रूप से नशेबाज लोग ही शामिल होते हैं । चरित्रहीन तो नशे का मुख्या कारण है ही। नशे में व्यक्ति अपने घर को ही तवाह नहीं कर देता अपितु अपनी पत्नी तथा अपने बच्चों को भी बेच देता है। समझदार आदमी इस रास्ते पर कदम नहीं बढ़ाता पर जो इस रास्त पर बढ़ जाता है उसके लिए लौटना उसके वश की बात नहीं रह जाती। यह एक ऐसा दरयल है जिसने नरने के बाद बाहर निकलने का कोई रास्ता नहीं दिखता।


बहुधा आदमी रोमांच की तलाश में - इस राह पर चल पडता है। रईसों के विगडेल बच्चे तो वहत हद तक इस राह पर चलकर अपना सर्वनाश कर ही लेते हैं। वे अपने पिता की कमाई ही नहीं उड़ाते अपितु छीना-झपटी, जेब-कतरी तथा जुएं जैसी हरकतें भी करने लगते हैं।


एक बार जब आदमी इस रास्ते पर चल पड़ता है तो धीरे-धीरे उसका कारवां भी बढ़ता जाता है। ऐसे कामों और इनमें आने वाली मुसीबतों से निपटने के लिए उपाय सुझाने वाले लोग भी उसे मिल जाते हैं । बहुत सारे गरीब और बेरोजगार लोग भी अनायास नशे की गिरफ्त में आ जाते हैं । दिल्ली की मनोवैज्ञानिक अशुम गुप्ता इसका कारण स्पष्ट करते हुए बताती है कि ऊंचे तबके के बच्चे पैसे की कीमत नहीं जान पाते तो पूर्ति के लिए भी इस तरह मुहाल होते कि उनका जीना ही कठिन हो जाता । दोनों ही स्थितियों में लोग नशे की तरफ कदम बढ़ाते हैं। गरीब बच्चों को तो ड्रग माफिया अपना शिकार बनाते हैं। सुध-बुध खो चुके ये बच्चे बहुत तरह से उनके काम आते हैं ।


बच्चों में मादक पदार्थों के बढ़ते सेवन पर चिंता जताते नए मनुक्त राष्ट्र संघ के मादक पदार्थ और अपराध विभाग (यूएनओडीसी) ने कहा है- हमें बच्चों को बताने की आवश्यकता है कि मादक पदार्थ कोई खेल नहीं है। नवीनतम आंकलन के अनुसार दुनिया में १५ से ६४ वर्ष की उम्र के बीच के करीब २० करोड़ लोगों ने पिछले एक साल में कम से कम एक बार मादक पदार्थों का सेवन अवश्य किया है। विशेषज्ञों का मानना है कि ४ से १० वर्ष की उम्र के बच्चों को हमेशा नजरअंदाज कर दिया जाता है जबकि सभी आयु वर्ग के बच्चे मादक पदार्थों के सेवन और तस्करी के शिकार होते हैं।


भारत में दिल्ली-मुंबई जैसे महानगर ही नहीं पंजाब, राजस्थान, उत्तरांचल, उ०प्र० व पूर्वोत्तर भारत के सीमावर्ती क्षेत्रों में भी इसका असर देखा जा सकता है। इस धंधे में लगे अंतर्राष्ट्रीय गिरोह भोले भाले लोगों को फांस रहे हैं। पाकिस्तान, अफगानिस्तान और म्यांमार के धंधेबाज भारत को बड़े बाजार के रूप में देखते हैं। इनकी जड़े पूरे देश में इस तरह फैली हुई हैं कि हजारों लाखों लोग हर वर्ष न केवल स्वयं ही आर्थिक दृष्टि से कमजोर बने हुए हैं अपितु देश की आर्थिक स्थिति के लिए भी नासूर बने हुए हैं । हजारों लोग रुग्ण बने हुए हैं। वे जाने-अनजाने अपराध का नया समाज शास्त्र गढ़ते जा रहे हैं।


हैआज पूरे समाज को इस बुराई पर आक्रमण करना आवश्यक है । यद्यपि सरकार का भी यह दायित्व बनता है नशे को रोकने का प्रयास करें। राजस्व के लोभ में यदि सरकार नशे को बढ़ावा देती है तो उचित नहीं कहा जा सकता। पर आज यह घुराई जैसी जड़ें जमा चुकी हैं उसके लिए समाज को भी आगे आना होगा। सभी वर्गों को नशे के विरोध में खड़े होना होगा। पर इसे पहले बच्चों से ही शुरू किया जा सके तो अच्छे परिणाम निकल सकते हैं । आजकल कहीं-कहीं तो विद्या संस्थान, विश्वविद्यालय भी नशे के अड्डे बने हुए हैं। उस किले बंदी को तोड़ना आवश्यक है। उन तत्वों को रोकना होगा जो अपना कारोबार बढ़ाने के लिए युवकों के जीवन को नष्ट कर रहे हैं । नशे के दलदल में फंसे लोगों के लिए काम कर रहे सहारा संस्थान से जुड़े अशोक शर्मा कहते हैं कि इससे उबरना असंभव नहीं है। जरूरत है केवल दृढ़ इच्छाशक्ति की। इसमें दवाओं का भी उपयोग किया जा सकता है और हम देते भी हैं योगध्यान जैसी विधियां । इन पर अमल कर लोगों को नशे से मुक्त कराया जा सकता है, अतः अणुव्रत महासमिति तथा अणुव्रत का पूरा कार्यदल भी जागरूक बन रहा है।