नीम के वृक्ष का हमारे जीवन में बहुत महत्व है। प्रकृति की इस महत्वपूर्ण देन नीम के वृक्ष की पत्तियां, छाल व कोपलें प्राकृतिक चिकित्सा में काम आती हैं। प्राकृतिक रूप से मनुष्य की चिकित्सा करने के लिये नीम को आयुर्वेद से सर्वगुण सम्पन्न - वृक्ष माना गया है।
नीम में शीतल मिनाशक व सूजन नाशक आदि गुण पाये जाते - हैं। नीम की भूमिका विभिन्न रोगों में उपयोगी है। कुष्ठरोग, वात रोग, विष दोष, खांसी, ज्वर, रूधिर, दोष, टी.बी., खुजली आदि दूर करने में सहायक है। प्राकृतिक चिकित्सा में इसका उपयोग प्रमेह, मधुमेह, नेत्र रोग में भी किया जाता है। नीम में साधारण रूप से कीटाणुनाशक शक्ति है। नयी कोपलों का नित्य प्रति सेवन करने से शरीर स्वस्थ्य व प्रसन्न रहता है। नीम के तेल में मार्गोसिन नामक उडनशील तत्व पाया जाता है। इस तेल की मालिश करने से कठिया व लकवा रोग में लाभ होता है। इसके बीज में 31 प्रतिशत तक एक तेल रहता है जो गहरे पीले रंग का कडवा. तीखा व दर्गन्धयक्त होता है। इस तेल में ओलिक एसिड रहता है।
बुखार में एक काढा तैयार किया जा सकता है। ज्वर उतारने के लिये नीम के इस काढ़े को आयुर्वेदाचार्यों ने अमृत कहा है। काढ़ा तैयार करने के लिये 250 ग्राम पानी, तुलसी 12 पत्ते, काली मिर्च के 10 पत्ते, नींबू एक, नीम की पांच पत्तियां प्रयोग में लायी जाती हैं। सबसे पहले काली मिर्च को पीसकर 240 ग्राम पानी में डालकर नींबू का रस व नीम की पत्तियां डालकर अच्छी तरह उबाला जाता है। पानी आधा रहने पर उसकी छानकर उस काढ़े को पीकर सो जाते हैं जिससे शरीर में पसीना निकलता है। इससे बुखार, खांसी व . सिरदर्द में लाभ होता है। चर्म रोग में नीम का मरहम बनाकर उपयोग किया जाता है। शरीर में घाव, चोट आदि ठीक हो जाते हैं। नीम के 'मरहम में नीम का रस व घी समान मात्रा में मिलाकर नीम का रस छीजकर केवल घी बचा रहता है और मरहम तैयार हो जाता है।
महिलाओं के श्वेत प्रदर रोग में भी नीम लाभकारी है। इस रोग में नीम व बबूल की छाल का काढ़ातैयार करके श्वेत प्रदर में उपयोग नीम की सूखी पत्तियां, कपड़ों व करने से अच्छा लाभ मिलता है। अनाज में रखने से कपड़ा व अनाज खराब नहीं होतानीम का वृक्ष आक्सीजन भी अधिक बनाता है, अतः इससे पर्यावरण शुद्ध होता है तथा कुष्ठ, टी.बी. जैसे रोगी भी स्वस्थ हो जाते हैं। प्राकृतिक चिकित्सा में बहुत उपयोगी वृक्ष माना जाता है।