रुद्राक्ष की उत्पत्ति भगवान रुद्र के अश्रुओं से मानी जाती है। श्रीमद् देवी भागवत के ग्यारहवें स्कन्ध में इस सन्दर्भ में कथा है- पूर्व काल में त्रिपुरासुत के वध हेतु भगवान् शंकर ने जब अधोरास्त्र का प्रयोग किया, तब उनके नेत्रों से आँसू की कुछ बूंदे पृथ्वी पर गिरी। उन्हीं अश्रु बिन्दुओं से महान रुद्राक्ष के वृक्ष उत्पन्न हुए। शास्त्रों में रुद्राक्ष के एक मुख से 14 मुख तक का वर्णन है। विशिष्ट गुणों से सम्पन्न विभिन्न मुखों के रुद्राक्ष के अलग-अलग देवता बताए गए हैं। एक मुखी रुद्राक्ष साक्षात् शिव स्वरूप होता है। समस्त पापों को नष्ट करने में सक्षम यह रुद्राक्ष भोग और मोक्ष दोनों प्रदान करता है लेकिन एक मुखी रुद्राक्ष अत्यन्त दुर्लभ है। द्विमुखी रुद्राक्ष में शिव और शक्ति दोनों का वास होने से अर्ध- नारीश्वर का प्रतीक माना जाता है। इसे धारण करने से जन्म-जन्मान्तर के पातक भस्म हो जाते हैं और हैं व्यक्ति तेजस्वी बनता है।
चतुर्मुखी रुद्राक्ष सृष्टिकर्ता ब्रह्मा जी का प्रतीक है। इसे धारण करने से निसंतान को संतान का सुख प्राप्त होता है। पंचमुखी रुद्राक्ष पंचदेवों शिव, गणेश, शक्ति, सूर्य और विष्णु का प्रतिनिधि है। इसको धारण करने से तन और मन शुद्ध होता है। षट्मुखी रुद्राक्ष स्वामी कार्तिकेय का स्वरूप होने से विद्या और शक्ति प्रदान करता है। इसी प्रकार हर रुद्राक्ष के अपने फायदे हैं। सबसे महत्वपूर्ण चतुर्दश मुखी रुद्राक्ष है जिसके सभी मृत्युंजय शिव है।।
यह जान लें- एक, चार, पांच, छः, दस और तेरह मुखी रुद्राक्ष को पहनने से पहले उसे 'ॐ ह्रीं नमः' मंत्र से अभिमंत्रित करना होता है। दो और चौदह मुखी रुद्राक्ष के लिए 'ॐ नमः' मंत्र, तीन मुखी रुद्राक्ष के लिए 'ॐ क्लीं नमः' सात और आठ मुखी रुद्राक्ष के लिए 'ॐ हुं नमः' और नौ एवं ग्यारह मुखी रुद्राक्ष के लिए 'ॐ ह्रीं हुं नमः' मंत्र तथा बारह मुखी रुद्राक्ष के लिए 'ॐ क्रौं डौ। नमः' को जपें।