लाला लाजपतराय वर्ष 1908 में अंग्रेजों द्वारा भारत में किए जा रहे अत्याचारों का पर्दाफाश करने के उद्देश्य से इग्लैण्ड गए। स्वामी दयानंद सरस्वती के शिष्य श्याम जी कृष्ण वर्मा उनके पुराने मित्र थे। उन्होंने लालाजी को 'इण्डिया हाउस' में ले जाकर विनायक दामोदर सावरकर से भेंट कराई। लाला जी ने युवक सावरकर की राष्ट्रभक्ति से प्रभावित होकर उन्हें आशीर्वाद दिया। वर्ष 1993 में लाला जी अमेरिका पहुंचे। वहां के समाचार-पत्रों में जैसे ही भारत में ब्रिटिश शासन के अत्याचारों के विरूद्ध उनका लेख प्रकाशित हुआ कि ब्रिटिश सरकार ने उनके भारत प्रवेश पर पांच वर्ष के लिए प्रतिबंध लगा दिया। अमेरिका में उन्होंने 'इण्डिया होमरूल लीग' की स्थापना कर प्रवासी भारतीयों को संगठित किया। लोकमान्य तिलक की प्रेरणा से ऐनी बेसेंट ने लालाजी को पांच हजार डॉलर भिजवाए। उनके सहयोगी डॉ० हार्डीकर ने एक दिन उनमें से कुछ रूपए लेकर लालाजी के लिए नया कोट खरीदना चाहा।लाला जी ने कहा, हार्डीकर, यह धन तिलक जी ने अमेरिका में भारत की के प्रचार के लिए भेजा है। मैं अपने पर एक पैसा भी खर्च करना घोर अधर्म मानता हूँ। वे अपने हाथ से भोजन तैयार कर बुधापूर्ति करते थे। एक-एक पैसा उन्होंने प्रचार कार्य में ही खर्च किया। अमेरिका के अखबारों में छपे धर्म और अध्यात्म संबंधी लेखों का उन्हें जो पारिश्रमिक मिलता था, उसी से रहकर गुजारा करते थे।
सादगी पसंद इन्सान थे लाला लाजपतराय