समस्त प्राणियों के जीवन रक्षक अग्निदेव

'अग्निदेव को ऋषियों ने अनेक विशेषणों से विभूषित किया है। उन्होंने अग्निदेव को सर्वश्रेष्ठ वंदनीय, अमर, ज्ञानी, श्रेष्ठ दूत आदि कहकर संबोधित किया है । अविनाशी, सबको जीवन देने वाले, हविवाहक, विश्व का त्राण करने वाले सबके आराध्य हैं अग्निदेव। इस प्रकार अपकी स्तुति ऋग्वेद में १/४४/५ में ऋषि प्रस्कण्व काण्व ने भी की है । यदि वृक्ष-वनस्पति औषधि आदि में सूर्य अग्नि तत्व (उष्णता) का आधान न करें, तो वे विनष्ट हो जाएंगे। हर प्रकार से यह अग्निदेव ही सृष्टि के समस्त प्राणियों व वृक्ष वनस्पतियों के पोषक हैं, पालन करने वाले हैं। इस प्रकार वेदों में अनेकानेक स्थानों पर अग्नि देवता के महत्व के वर्णन पढ़ने को मिलते हैं, इसलिए हमारी संस्कृति में यज्ञ को पिता कहा गया है ताकि यज्ञ के माध्यम से किसी न किसी रूप में हम अग्नि देवता के साथ संलग्न रहें, आलोक प्राप्त करते रहें। क्षपः व्युष्टिषु सवितारं उषसंअविना भगं। अर्थात रात्रि के पश्चात उषाकाल में सविता, उषा दोनों अश्विनीकुमारों, भग एवं अन्य देवताओं के साथ यहां आएं। आशय यही है कि उषाकाल में यज्ञ करने से दैवी शक्तियों का प्राकट्य होता है और ये दैवी शक्तियां उसी समय दैवी संपदा बिखेरती हैं, किंतु प्राणियों के जीवन रक्षक इसके लिए अग्निदेव को प्रदीप्त करने वाली ज्ञानी जनों को अग्निदेव प्रखरता प्रदान करते हैं।


आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में प्रतिदिन लंबे-चौड़े कर्मकांड के साथ, जो कि समय साध्य है, यज्ञ संपन्न करना सबके लिए संभव नहीं होता। फिर हर दिन यज्ञ के लिए पुरोहितों का आश्रय लेना भी आजकल एक तरह के झंझट का काम है। लोगों का दिमाग सुबह उठते ही दिनभर इसी बारे में सोचते रहते हैं कि आज कौन-कौन से काम उन्हें निपटाने हैं, तो भला मन की शांति के लिए व परोक्ष लाभ अर्जित करने के लिए उनके पास समय कहां है? वैसे भी जमाना' प्रत्यक्ष लाभ की ओर अधिक आकर्षित है, सो उसी लाभ की प्राप्ति में जुटा रहता है। यज्ञजैसे परोक्ष लाभ वाले कार्यों के बारे में सोचने के लिए फुरसत ही कहां? साथ यज्ञ आदि के रूचि भी चाहिए। केवल सोचने से कुछ नहीं होता । ऐसी परिस्थिति में जो समय भी कम लगे और लाभ ज्यों के त्यों मिले, ऐसी सर्वसुलभ आध्यात्मिक पद्धति ही उपयोगी हो सकती है।


आज की इसी स्थिति को देखते हुए युग निर्माण योजना के प्रणेता पं० श्रीराम शर्मा आचार्य जी ने दीपयज्ञ का आविष्कार किया। यह दीपयज्ञ सबके लिए सरल, सुलभ और लाभदायक भी है। इस पद्धति में मंत्रों को भी संक्षिप्त कर दिया गया है। यज्ञ वेदी के स्थान पर ५ गौ-घृत के दीपक (दीपक की संख्या कम-ज्यादा हो सकती है) जलाकर श्रद्धा-भावना के साथ आहुतियां दी जाती हैं। इस पद्धति के यज्ञ में जिसे 'दीपयज्ञ' कहा गया है, कोई भी स्वच्छ पोशाक पहनकर, शुद्ध मन से सम्मिलित हो सकता है। इसमें यज्ञ की तरह कई पालियां नहीं होती हैं। एक ही बार में या पाली में यदि मंत्र आते हों, तो सभी लोग समवेत स्वर में मंत्रोच्चारण करके आहुतियां समर्पित कर सकते हैं । सामूहिक मंत्रोच्चार का प्रभाव भी अधिक होता है। सामूहिकता की शक्ति को आज के वैज्ञानिक भी स्वीकार करते हैं । फिर . श्रद्धा-भावना के साथ दी गई आहुतियां । निश्चित रूप से सबके लिए लाभदायक साथ होंगी, इसलिए इस तरह से दीपयज्ञ के माध्यम से अग्निदेवता की ऐसी पूजा-आराधना भी हो जाती है। उनके पूजा-आराधना भी हो जाती है। उनके चिंतन का लाभ, सामूहिक प्रार्थना का लाभ वैसे भी सबको मिलता ही है ।। अग्निदेव के सामीप्य-सानिध्य का एक अभूतपूर्व माध्यम है यह दीपसा पद्धति, जो सहज-सरल भी है और कम समय लेने वाली व कम खर्चीली भी है। इसे सब लोग कर सकते हैं और यज्ञ का पूरा लाभ ले सकते हैं।