कार्तिक शुक्ल नवमी को अक्षय नवमी कहते हैं। इसे आंवला नवमी भी कहा जाता है। पुराणों के मतानुसार, त्रेता युग का प्रारंभ इसी दिन से हुआ था। इस दिन आंवले के वृक्ष की पूजा करने का भी विधान है। अक्षय का अर्थ है, जिसका क्षरण न हो। मान्यता है कि इस दिन किए गए सद्कार्यों का अक्षय फल प्राप्त होता है।
अक्षय नवमी के दिन मथुरा- वृंदावन की परिक्रमा करने का भी विशेष महत्व दिया जाता है। इसके पीछे मान्यता है कि इस दिन श्रीकृष्ण ने मथुरा-वृंदावन में अपने वाल-सखाओं के साथ घूम-घूम कर कंस के आतंक के विरुद्ध जन- जागरण किया था और वहां के निवासियों से मिलकर उनका पक्ष जाना था। इसका ही परिणाम था कि अगले दिन दशमी को श्रीकृष्ण ने अत्याचारी शासक कंस का अंत कर दिया था। इस तरह यह जन- जागरण का भी पर्व है। यह पर्व यह संदेश देता है कि जीत हमेशा सत्य की ही होती हैं असत्य, आंतक और छल भले ही कितने भी शक्तिशाली हों, उनकी उम्र ज्यादा नहीं होती। सत्य अक्षय है। अतः सर्वदा सत्य के मार्ग का ही वरण करना चाहिए। आज भी आम लोग इस दिन मथुरा- वृंदावन की परिक्रमा को पूरा करते हैं। यह परिक्रमा मथुरा के विश्राम घाट पर यमुना जल के आचमन को लेकर शुरू होती है और यहीं पर आकर समाप्त होती है। परिक्रमा मार्ग में अनेक मंदिर हैं, जिनके लोग दर्शन लाभ प्राप्त करते हैं।
पौराणिक ग्रंथों में अक्षय नवमी के संबंध में एक रोचक कथा भी है। दक्षिण में स्थित विष्णुकांची राज्य के राजा जयसेन के इकलौते पुत्र का नाम मुकुंद देव था। एक बार राजकुमार मुकुंद देव जंगल में शिकार खेलने गए। तभी उनकी नजर एक सुंदरी पर पड़ी। वे उस पर मोहित हो गए। युवती का नाम किशोरी था और वह इसी राज्य के व्यापारी कनकाधिप की पुत्री थी। मुकुंद देवी ने उससे विवाह करने की इच्छा प्रकट की। इस पर युवती रोने लगी। उसने कहा कि मेरे भाग्य में पति का सुख लिखा ही नहीं है। राज ज्योतिषी ने कहा है कि मेरे विवाह मंडप में बिजली गिरने से मेरे वर की तत्काल मृत्यु हो जाएगी।
का मुकुंद देव को अपने प्रस्ताव पर अडिग देख किशोरी भगवान शंकर की आराधना में लीन हो गई और मुकुंद देव अपने आराध्य सूर्य की आराधना में। कई माह बाद भगवान शंकर ने युवती से सूर्य की आराधना करने को कहा। दोनों सूर्य की आराधना कर रहे थे, इसी बीच की विलोपी नाम दैत्य की नजर किशोरी पर पड़ी। वह उस पर झपटासूर्य देव ने अपने तेज से उसे तत्क्षण भस्म कर दिया और युवती से कहा कि तुम कार्तिक शुक्ल नवमी को कि तम कार्तिकीको आंवले के वृक्ष के नीचे विवाह मंडप बनाकर मुकुंद देव से विवाह कर लोकिशोरी और मुकुंद देव ने मिलकर मंडप बनाया। अकस्मात घनघोर घटाएं घिर आई और बिजली चमकने लगी। भांवरें पड़ गईं, तो आकाश से बिजली विवाह मंडप की ओर गिरने लगी, लेकिन आंवले के वृक्ष ने उसे रोक लिया।
इस पौराणिक कथा के कारण आंवले के वृक्ष को पूजनीय माना जाने लगा। हालांकि आंवले का वृक्ष औषधीय गुणों से परिपूर्ण होता है। पौराणिक ग्रंथों से लेकर नए शोधों तक में इसके अनेक गुण बताए गए का वरण करना हैं। इसलिए इसकी पूजा का तात्पर्य इस अत्यन्त लाभकारी वनस्पति को करना चाहिए वचाये रखने का संकल्प लेना भी है, ताकि हम स्वस्थ रह सकें।