श्री रंगनाथ मंदिर

पौराणिक दृष्टि से भगवान श्री रंगनाथ अर्थात श्री विष्णु ने तीन स्थानों पर विराजमान होकर उन स्थानों को भू-लोक के बैकुंठ का मान दे दिया। ये तीन स्थान हैं- पूर्व की दिशा में श्री रंगम, दक्षिण की दिशा में तिरुअनंतपुरम एवं पश्चिम की दिशा में श्रीरंगपट्टनम । तीनों ही स्थानों पर श्री विष्णु की शेषशाची मुद्रा श्री रंगनाथ स्थल कपिल मुनि, सनकादिक ऋषि एवं ब्रह्मा तथा रुद्र के पवित्र साधना स्थलों में माना जाता है। कहा जाता है कि कावेरी नदी ने इसी स्थल पर श्री विष्णु के शेषशायी रूप की आराधना की थी। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर श्री विष्णु ने यह आशीर्वाद दिया कि इस स्थल पर कावेरी को गंगा से अधिक पवित्र माना जाएगा । यह स्थल पवित्र तीर्थ स्थल बनेगा और विष्णु यहीं निवास कर भक्तों की संपूर्ण अभिलाषाओं की पूर्ति करेंगे। मैसूर के निकट श्रीरंगपट्टनम में स्थित है यह विष्णु मंदिर । इस स्थल को गौतम क्षेत्र की संज्ञा से प्रदान की गई है। इस संदर्भ में एक पौराणिक कथा भी बताई जाती वैदिक काल की बात है। 


तब गौतम ऋषि का आश्रम गोदावरी नदी के किनारे था। वह स्थल अत्यंत उर्वरक था। संयोग से 'ष्टि के कारण दूसरे क्षेत्र में जल के लिए त्रस्त्र कुछ ऋषि जल को खोजते-खोजते गौतम ऋषि के आश्रम में पहुंचे। परंपरा के अनुसार, गौतम ऋषि ने आश्रम क्षेत्र से ही पके धान को लेकर अतिथियों को भोजन कराया । जल की वहां प्रचुरता थी ही, अतः ऋषिगण अंदर · तक तृप्त हो गए। साथ ही उन्हें गौतम ऋषि से ईर्ष्या भी हुई कि ऐसे उर्वरक क्षेत्र पर गौतम ऋषि का अधिकार है। उन्होंने गौतम ऋषि से उस उर्वरा भूमि को छीनने हेतु षड्यंत्र रचा । उन ऋषियों ने अपने तपोबल से एक गाय की सृष्टि की और उसे धान के खेतों में चरने के लिए छोड दिया। गाय सारा खेत चर गई। गौतम ऋषि के शिष्यों ने जब उसे भगाया, तब वह मायावी गाय गौतम ऋषि की ओर गई, मानो उन पर प्रहार करना चाहती हो। गौतम ऋषि ने स्वरक्षार्थ दंड उठाया ही था कि गाय वहीं ढेर हो गई। ऋषियों ने उन पर गोहत्या का आरोप लगाकर आश्रम छोड़ने पर मजबूर कर दिया। उन्हें कावेरी तट पर विराजमान श्री रानाथ की सेवा का आदेश दिया गया।


गौतम ऋषि रंगनाथ पहुंचे और बोधायन, याक्षवल्क्य, आत्रे, कण्व, शुक्र एवं पाराशर आदि ऋषियों के साथ कावेरी तट पर रंगनाथ को प्रसन्न करने के लिए यज्ञ किया। यज्ञ से प्रसन्न श्री रंगनाथ ने मेष मास में शुक्ल पक्ष सप्तमी, शनिवार को ऋषियों को दर्शन दिए । साथ ही, उन्होंने संपूर्ण क्षेत्र को ही गौतम ऋषि क्षेत्र घोषित कर दिया। तभी से यह क्षेत्र गौतम क्षेत्र एवं श्री रंगनाथ स्वामी मंदिर, जिसका निर्माण गौतम ऋषि की प्रार्थना पर स्वयं श्री ब्रह्मा ने किया था, ब्रह्मानंद विमान के रूप में पूजित है। इस दिवस पर प्रति वर्ष रंग जयंती का आयोजन किया जाता है। यह भी लोक विश्वास है कि तुलामास की कृष्ण-दशमी के दिन कावेरी स्नान अष्ट तीर्थ स्नान के बराबर पुण्य देता है । श्री रंगनाथ मंदिर स्थित कृष्णरंग के कांची पत्थर से निर्मित विशाल शेषशायी प्रतिमा का रूप अनिवर्चनीय है। ऐतिहासिक दृष्टि से भी यह स्थान लगभग २००० वर्ष प्राचीन तो माना ही जाता है । इसका मूल नाम रंगपुरी था, बाद में इसे लक्ष्योनमानपुरी भी कहा गया। यहां श्री रंगनाथ जी के अतिरिक्त श्री लक्ष्मीनरसिंह, श्री गंगाधरेश्वर, श्री ज्योतिर्मानेश्वर आदि मंदिर भी मौजूद हैं।