जिसके सौम्य शिबर के ऊपर, सुन्दर सूरज उगता है।
जिसके दिव्य मुकुट के अन्दर, शोभित हिमकण मुक्ता है।।
महा मोद में ी हिमानी, शिव का ध्यान लगाती है,
देव दुन्दुभी बजा रहे हैं, देवी गुणगण गाती है।
गंगा-यमुना सरस्वती की, धारा भी उन्मुक्ता है,
जिसके उच्च शिखर के ऊपर, सुन्दर सूरज उगता है।।
गौरी शंकर ध्यानमग्न हैं, नीलकण्ठ में विषधर हैं,
कैलासी काशी के वासी, बाँट रहे सुख घर-घर हैं।
नाच रहे हैं नगी भुंगी, गुण गायन नही रुकता है,
जिसके सौम्य शिखर के ऊपर, सुन्दर सूरज उगता है।।
बद्रीनाथ-केदारनाथ की पुण्यस्थली निराली है,
इस धरती को पुण्य प्रभा को, जिसने देखी भाली है।
वही धन्य हो गया प्राणी, सचमुच जीवन मुक्ता है,
जिसके सौम्य शिखर के ऊपर, सुन्दर सूरज उगता है।।
गंगा-यमुना धाम मनोहर, चारों पुण्य दिलाते हैं,
धर्म-अर्थश्री काम-मोक्ष के, दर्शक दर्शन पाते हैं।
चारों धाम करे जो दर्शन, वह जीवन ऋण मुक्ता है,
जिसके सौम्य शिखर के ऊपर, सुन्दर सूरज उगता है।।
हरिद्वार से उच्च हिमालय, देवभूमि कहलाती है,
जिसकी पावन गुणगण गाथा, जग में गायी जाती है।
जो भी इस धरती को पूजे, हो वह पाप विमुक्ता है,
जिसके सौम्य शिखर के ऊपर, सुन्दर सूरज उगता है।।
वैष्णवि धर्मधुरी को धारे, कल्याणी कल्याण करें,
जो इनका दर्शन करते हैं, उनका पूछ तम त्राण करें।
जो माँ का जयकारा बोले, उनका पथ नहीं सकता है,
जिसके सौम्य शिखर के ऊपर, सुन्दर सूरज उगता है।।
हिमगिरि से सागर तक जाकर, कल-कल गौरवगान किया,
गंगा-यमुना-सरस्वती ने, जन जन का कल्याण किया।
भाग्य जगा भारत माता का, होकर सुख संयुक्ता है,
जिसके सौम्य शिखर के ऊपर, सुन्दर सूरज उगता है।।
'शिव से शिव तक हरि से हरि तक, सीमा बँधी हमारी है,
भारत माता के हम बेटे, माँ प्राणों से प्यारी है।
जिसके चरणों की पूजा में हम सबकी उत्सुकता है,
जिसके सौम्य शिखर के ऊपर, सुन्दर सूरज उगला है।।
ब्रह्म कपाल बद्रिका दर्शन, तप्त कुंड में स्नान करें,
जहादेव केदारनाथ का, जो जन मन में ध्यान करें।
हो जाता पावन वह मस्तक, ओ चरणों में झुकता है,
जिसके सौम्य शिखर के ऊपर, सुन्दर सूरज उगता है।।
चढ़ते हैं जो दर्शन के हित, पुलकित विकट चढ़ाई को,
आशुतोष आते बल देने, हर भाई हर माई को।
शंकर का जयकारा बोले, भक्त नहीं वह रुकता है,
जिसके साम्भ्य शिखर के ऊपर, सुन्दर सूरज उगला है।।
जिसके दिव्य मुकुट के अन्दर, शोभित हिमकण मुक्ता है।।
जिसके सौम्य शिखर के ऊपर, सुन्दर सूरज उगता है।