स्वतंत्रता की भूमिका लिखी नेताजी सभाषचन्द बोस ने

की नेताजी सुभाष का जन्म कटक में 23 जनवरी 1897 में हुआ था। उनकी माता का नाम प्रभावती व पिता का नाम राय बहादुर पिता जानकी दास था। वे वीरता, साहस, त्याग एवं सेवा तथा करूणा की साक्षात मूर्ति थे। वे बचपन से ही अंग्रेजों और उनकी गुलामी तथा साम्राज्यवाद के घोर विरोधी थे। जब वे प्राईमरी में थे एक अंग्रेज लड़ने ने एक निरीह हिन्दुस्तानी बालक को बहुत बुरी तरह मारा पीटा और डैम पुल वगैरह गाली दी, उन्होंने उसका बदला लिया और उस अंग्रेज लड़के को पीटकर चेतावनी दी कि आगे वो किसी हिन्दुस्तानी बालक को कभी न पीट। इसी तरह जब वे प्रेसीडेन्सी कालेज में भर्ती हुए तो वहाँ का वातावरण अंग्रेजों के प्रभाव में था। एक प्रोफेसर मि० ओटम वक्त बेवक्त बिना बात हिन्दुस्तानियों को पिछड़ा हुआ, जंगली, असभ्य आदि कहकर अपमानित किया करते थे। एक दिन सुभाष को यह बर्दाश्त नहीं हुआ और उन्होंने एक चांटा उनके गाल पर मार दिया और कहा हिन्दुस्तानियों में अब भी स्वाभिमान शेष है। यह एक अप्रत्याशित घटना थी। उन्हें निलम्बित कर दिया गया। इसके बाद वो कटक चले गये और अपनी पढ़ाई जारी रखी। उनके पिता चाहते थे कि वे आई.सी.एस. बने। पर उन्हें आई.सी.एस. बनकर अंग्रेजों की नौकरी की नौकरी करना पसन्द नहीं था। पर जब पिता ने कहा कि इसलिए डर रहे हो कि अंग्रेजों से पढ़ाई में मुकाबला करना पड़ेगा तो उनहोंने यह परीक्षा पास की पर साथ ही इस्तीफा भी भेज दिया। इग्लेण्ड से आते ही उन्होंने उसका महात्मा गांधी के आन्दोलन सविनय अवज्ञा आन्दोलन में भाग लेना चाहा आगे पर बाद में वे चित्ररंजनदास जी से कभी प्रभावित हो गये। उन्होंने एक पत्र प्रेसीडेन्सी निकाला कि सारी जिम्मेदारी सुभाष बाबू को दे दी। उन्होंने इस पत्र के । द्वारा भारतीय आजादी और अंग्रेजों वक्त के विरूद्ध इतना प्रचार किया कि को सरकार ने उन्हें सन् 1921 में आदि गिरफ्तार कर लिया और छः महीने । की सजा कर दी। जेल से लौटने पर नहीं उन्होंने स्वराज की प्राप्ति के लिए उनके नौजवानों को संगठित किया और कहा अपने जोशीले भाषणों से देश में विप्लव फैला दिया। उन्होंने चित्ररंजन दास के साथ स्वराज पार्टी में भी  काम किया। पर 25 अक्टूबर 1923 में वे कलकत्ता के मेयर चुने गये फिर उन्हें सरकार ने 1924 में गिरफ्तार करके फिर जेल भेज दिया माण्डले वर्मा की जेल में रखा गया। यहीं पर उनके ऊपर कछ पठान वार्डरो ने लाठी प्रहार से घायल किया। फिर 1926 में स्वास्थ्य खराब होने के कारण उन्हें छोड़ दिया गया। 1927 में उन्होंने असेम्बली का चुनाव जीता और इण्डियन इंडिपेन्डेंस लीग का संगठन किया। 3 सितम्बर को यतीन्द्रनाथ दास की जेल में मौत हो गई। जब उनकी अर्थी कलकत्ता गई तो उन्होंने अत्यन्त ओजस्वी भाषण दिया। अतः उन्हें पुनः 6 महीने के लिए सरकार ने फिर गिरफ्तार कर लिया। साइमन कमीशन का भी उन्होंने 1929 में बहिष्कार किया। फिर उन्हें 1931 में मथुरा में जोशीले भाषण के लिए फिर गिरफ्तार कर लिया और 6 महीने की कैद कर दी गई। पर बाद में उन्हें स्वास्थ्य खराब होने के कारण छोड़ दिया गया। वे इलाज के लिए स्वीटजरलैण्ड चले गये। फिर 1937 में सरकार ने उन्हें देश में आने की इजाजत दे दी। 1938 में कांग्रेस के प्रधान बने। तब उन्होंने जोर-शोर से स्वतंत्रता का प्रचार किया और यह प्रस्ताव रखा कि हमें अंग्रेजों को भारत को आजाद करने के लिए एक तारीख निश्चित कर देनी चाहिए कि वे हमें तब तक आजादी दे दें। पर महात्मा गांधी ने उनके इन विचारों को पसन्द नहीं किया और 1938 में उनके खिलाफ श्री पट्टाभिसीतारमैया को खड़ा किया। पर सुभाष बाबू फिर भारी बहुमत से चुके गये। इस पर गांधीजी एवं उनके भक्तों ने उनके काम में रोड़े अटकाये। इससे. दुःखी होकर उन्होंने कांग्रेस छोड़ दी। फिर फारवर्ड ब्लाक दल की स्थापना की। इससे युवकों में काफी जोश आया। उसी समय डालैण्ड में सरदार ऊधम सिंह ने जलियावाला बाग के हत्याकाण्ड का बदला लेने के लिए जाताना मोवायर को गोली से मार दिया। 22 जून 1940 को नेता जी को सांवरकर जी ने बम्बई बुलाया और उनसे कहा कि वे रास बिहारी बोस की तरह अंग्रेजों को धोखा देकर जापान चले जायें। वहाँ उन्हें रास बिहारी बोस की इन्डेन्डेंसलीग को आगे बढ़ाते हुए इटली, जर्मनी और जापान के ब्रिटिश कैदियों को छुड़ाकर उनका सहयोग करना चाहिए। वे बढ़े हो गये हैं इसलिए उन्हें आजाद हिन्द फौज बनाकर उनके काम को आगे बढ़ाना चाहिए। उन्होंने सावरकर जी की बात को मानकर संकल्प कर लिया। पर वे जब कलकत्ता लौटे तो उनको सरकार ने गिरफ्तार कर लिया। नेता जी ने जेल में अनशन कर दिया। उनका स्वास्थ्य खराब होने से सरकार ने विवश होकर उनको छोड़ दिया। पर उन्हें घर में कैद कर दिया और चारों तरफ पुलिस लगा दी गयी। वे भी एक कमरे में बन्द रहने लगे और उन्होंने सबसे मिलना जुलना छोड़ दिया। फिर एक दिन वेजियाउद्दीन पठान के भेष में 16 जनवरी 1941 की रात्रि को 8 बजे से निकल भागे और कलकत्ते से ट्रेन में बैठकर पेशावर चले गये। वहाँ से वे उत्तम चन्द्र मल्होत्रा और भगत राम की सहायता से कावूल पहुँच गये। फिर इटली के राजदूत की पत्नी ने उन्हें रूस में स्टालिन से मिलवाया। उन्होंने नेता जी को जर्मनी पहुँचा दिया। हिटलर ने उनका काफी सम्मान किया और कहा मैं तो 8 करोड़ जर्मनों का नेता हूँ पर नेता जी चालीस करोड़ भारतीयों के हृदय सम्राट है। उन्होंने वहाँ पर ब्रिटिश फौज के इटली और जर्मन के भारतीय सैनिकों को छुड़ाया ने और लिवरशन आमा बना बाद व 1949 बाँधाये पार करक जापा गये। वहाँ पर उन्होंने रास बिहारी बोस के नेतृत्व " अन्य देशों से बुलाकर भारतीय प्रवासियों का एक सम्म जिसमें उनका रास आजाद हिन्द फाज। कमान्डर नियुक्त कर दिया और खुद मुख्य सलाहकार बने रहे। इसके बाद उन्होंने वहाँ पर स्वतंत्रता दिवस मनाया। 04 जून 1940 को आजाद हिन्दू फौज ने अंग्रेजों पर आक्रमण कर दिया उससे पहले जापान ने उनको अंडमान और निकोबार दीप दे दिये थे। आजाद हिन्द फौज ने राम कोहिमा, पलल व ताहम अंग्रेजो से छीन लिये। चीन, जापान, जर्मनी, आयरलैण्ड आदि ने इस सरकार को मान्यता दी। पर 7 मई 1945 को जर्मनी ने हार मान ली। क्यों कि 13 अगस्त 1945 को अमेरिका ने जापान पर हिरोशिमा और नागासाकी पर बम फैक कर जापान को हार मानने के लिए मजबूर कर दिया था। अतः नेता जी को भी एक विमान से अज्ञात देश के लिए रवाना कर दिया गया पर उनकी मृत्यु उसी विमान में ताईपेई पर हो गई। उनके बारे में जापान ने भी यह समाचार प्रस्तुत कर दिया। कर्नल हवीबों रहमान उनके अंगरक्षक थे। उन्होंने कहा कि उनकी मौत ज्यादा जल जाने से हो गई। पर किसी ने भी इन समाचारों पर विश्वास नहीं किया और बड़े समय तक यह भ्रम बना रहा कि नेताजी जीवित है। पर श्री पी.एन.ओक ने भी अपनी एक किताब में जो 2007 में प्रकाशित हुई थी वह लिखा है की उनकी मौत उसी समय हो गई थी। पर वे हरेक भारतीय के हृदय में आज भी जीवित हैं।