उपवास का मतलब होता है, अपन पास रहना। इसका अन्य कोई मतलब ही नहीं होता। आत्मा के पास निवास करना उपवास है। जैसे उपनिषद का अर्थ है गुरु के पास बैठना। लेकिन अब उपवास का अर्थ फास्टिंग या अनशन हो रहा है- भूखे रहना। यह ठीक नहीं।
यह उपवास नहीं चल सकता, न खाने वाला। अगर न खाने पर जोर दिया, तो वह दमन और काया को कष्ट देने वाली बात है। क्या महावीर की तरह चार महीने तककोई आदमी बिना खाए रह सकता है? हां, उपवास में रहकर रह सकता है। क्योंकि उपवास का मतलब न खाना नहीं है। उपवास का मतलब है कि एक व्यक्ति अपनी आत्मा (अंतस) में लीन हो गया है कि दिन बीत जाते है, रात बीत जाती है, उसे शरीर का पता नहीं। एक संन्यासी मेरे पास आए। मैंने कहा, आप खाना खा लें। तो उन्होंने कहा, आज तो मेरा उपवास है। मैंने कहा, कैसा उपवास करते हैं ? उन्होंने कहा. आप इतना भी नहीं जानते कि उपवास कैसे करते हैं ? खाना नहीं ले दिन भर। मैंने कहा, इसको आप उपवास समझते हैं ? फिर अनान क्या है ? उन्होंने कहा, दोनों है, अपने एक ही चीज हैं। नाम बदल जाने से क्या फर्क पड़ता है। तो मैंने कहा, फिर आप अनशन ही करते हैं, उपवास नहीं। जब आप अनशन करेंगे, तो ध्यान रहे, आप पुरे समय शरीर के पास रहेंगे। तब आप आत्मा के पास रह भी नहीं सकते।
अनशन का मतलब ही यही है कि नहीं खाया, जबकि खाने का ख्याल है। ऐसे में दिन भर शरीर के पास ही मन घूमेगा। बार-बार ख्याल आएगा कि भूख लगी है, प्यास लगी है। सोचेंगे कि कल क्या खाएंगे, परसों क्या खाएंगे। ...तो मैंने उनसे कहा कि उपवास में अनशन तो बिलकुल उल्टा है। दोनों में भोजन नहीं किया जाता, फिर भी दोनों उल्टी ही बातें हैं, क्योंकि अनशन में आदमी शरीर के पास रहता है- चौबीस घंटे, जितना कि खाना खाने वाला भी नहीं रहता। दो बार खा लिया और बात खत्म हो गई। वहीं अनशन करने वाला दिन भर खाता रहता है, मन ही मन में खाना चलता रहता है। जबकि उपवास का मतलब है कि किसी दिन ऐसी मस्ती में अपने भीतर चले आएं कि शरीर की कोई याद ही न रहे। संन्यासी से मैंने कहा कि आप जिस दिन भी ध्यान करें, तो उस दिन अपने पास रहना ध्यान में ऐसे डूब जाएं कि उठने का मन न हो तो उठे मत। जब उठने का मन हो, तब उठ जाएं। उन्हें मैं तब ध्यान कराता थाउनके साथ एक युवक भी आया हुआ था। उसने एक दिन सुबह आकर मुझसे कहा, आज चार बजे से वे ध्यान में गए हैं तो नौ बज गया, अभी तक उठे नहीं हैं।
उन्होंने कह दिया है कि उठाना मत। लेकिन मुझे बहुत डर लग रहा है, वे पड़े हैं। मैंने कहा, उन्हें पड़ा रहने दो। उठाना मत। ग्यारह बजे रात वे संन्यासी मेरे पास फिर आए और उन्होंने कहा कि आज समझा कि उपवास का क्या अर्थ है ? कितना भेद है उपवास और अनशन में। आज सच में मेरा उपवास हो गया। हद दरजे का हुआ है। जब आप भीतर चले जाते हैं, तो बाहर का स्मरण छूट जाता है। हमारा शरीर इतना अद्भुत यंत्र है कि जब हम भीतर होते हैं तो शरीर आटोमैटिक हो जाता है, अपनी व्यवस्था पूरी करने लगता है। आपको कोई चिन्ता करने की जरूरत नहीं रहती। साधना का मतलब यह है कि शरीर ऐसा हो कि जब आप भीतर चले जाएं, तो उसे आपकी कोई जरूरत न हो।