वास्तु शास्त्र की कुछ अदभुत बातें

घर एक ऐसी जगह होती है जहां हम खुलकर सांस लेना चाहते हैं। जहां मीठी-सी नींद पलक झपकते ही आ जाए। जहां कभी पूरे परिवार के साथ हंसी की खिलखिलाहट सुनाई दे तो कभी कोई कोना हमारे एकांत का साभ बने। इसी घर में जब कलह और तनाव मेहमान बनते हैं तो सारे घर की शांति चली जाती है।


हमें नहीं पता होता है कि ऐसा क्यों होता है ? क्यों छोटी-छोटी बातों पर हम अपने ही परिवार से झगड़ बैठते हैं ? वास्तु शास्त्र बताता है कि जाने-अन्जाने घर के निर्माण में कुछ दोष रह जाते हैं, यह उन्हीं का परिणाम होता है। पेश हैं आसान से वास्तु टिप्स जो आपके घर को देंगे सुख, शांति और खुशियों की ठंडी छांव।


*दरवाजों के कब्जों मे तेल डालते रहें अन्यथा दरवाजा खोलते या बंद करते समय आवाज करते हैं, जो वास्तु के अनुसार अत्यंत अशुभ तथा अनिष्ठकारी होता है।


* घर में विद्युत संबंधी उपकरण जो कर्कश ध्वनि उत्पन्न करते हों जैसे पंखे, कूलर आदि को समय- समय पर मरम्मत करवाते रहें।


*घर में कम से कम वर्ष में दो बार हवन करवाएं।


* अगर भवन में जल प्रवाह ठीकन हो या पानी की सप्लाई सही दिशा में न हो तो उत्तर-पूर्व दिशा से यानी ईशान कोण से भूमिगत जल की टंकी का निर्माण कर उसी से भवन में जल की सप्लाई करें। ऐसा करने से यह वास्तुदोष समाप्त हो जाएगा तथा जल की गलत दिशा में सप्लाई भी बंद हो जाएगी।


*घर में पूजास्थल का निर्माण ईशान कोण में करवाएं।


*घर का अग्र भाग ऊंचा तथा पृष्ठ भाग नीचा हो तो निचले भाग में डिश एंटीना टी.वी. एंटीना आदि को अगले भाग से ऊंचा कर लगा दें। इस प्रकार यह वास्तुदोष पूर्ण रूप से समाप्त हो जाएगा।


* यदि घर का 'पूर्व एवं आग्नेय निचले हों और वायव्य तथा पश्चिम ऊंचे हों तो प्लाट के स्वामी को लड़ाई-झगड़े, विवाद के कारण मानसिक यातना सहनी पड़ती हैं।


*घर का वायव्य कोण निचला होने पर भी शत्रुओं की संख्या बढ़ती है। शत्रुओं के कारण गृह-स्वामी को मानसिक तनाव रहता है।


* अगर किसी घर का दक्षिण और आग्नेय निचला हो, वायव्य और उत्तर ऊंचे हों तो घर का मालिक कर्ज और बीमारी के कारण मानसिक तनाव में रहता है। जिस घर का नैऋन्य और दक्षिण निचला होता है तथा उत्तर और ईशान ऊंचा होता है तो ऐसे घरों के मालिक को अपवित्र कार्य करने और व्यसनों का दास बनने से मानसिक अशांति रहती है और परिवार के लोग भी तनाव में रहते है।


* यदि आपकी दो मंजिला मकान बनवाने की योजना है, तो पूर्व एवं उत्तर दिशा की ओर भवन की ऊंचाई कम रखें।