महामना मदनमोहन मालवीय का व्यक्तित्व विलक्षण और बहुआयामी था। भारतीय राजनीति, शिक्षा, समाजसेवा, कानून और गंगा की अविरल धारा जैसे पर्यावरण विषयक क्षेत्र में उनका योगदान ऐतिहासिक रहा।
देश की युवा पीढ़ी में राष्ट्रीयता का मंत्र फूंकने वाले मालवीय जी शास्त्रीय सिद्धांतों के अनुसार पंच वकार-भाव्य वपु (शरीर), भव्य वाणी, भव्य विचार तथा भव्य वैदूष्य की प्रतिमूर्ति थे। उनका व्यक्तित्व ही नहीं, सब कुद भव्य और बेहद आकर्षक था। मालवीयजी की पहचान अनेक रूपों में थी। देशभक्त, शिक्षाशास्त्री, राजनीतिज्ञ, वक्ता, पत्रकार, वकील और समाज सुधारक। पंडित मदन मोहन मालवीय जी बहुमुखी व्यक्तित्व के स्वामी थे। 1887 के जुलाई में वे अध्यापन कार्य त्यागकर कालाकांकर में 'हिन्दोस्थान' का सम्पादनं करने लगे। मालवीय जी के संपादकत्व में 'हिन्दोस्थान' ने बड़ी ही लोकप्रियता हासिज की। तत्कालीन सामाजिक, आर्थिक राजनीतिक समस्याओं पर उनके निर्भीक सम्पादकीय लेख और टिप्पणियाँ बहुत लोकप्रिय हुई। 1907 में मालवीय जी ने स्वयं हिन्दी साप्ताहिक 'अभ्युदय का प्रकाशन किया। यह पत्र 1915 तक साप्ताहिक रहा, फिर दैनिक हो गया। इसे भी ब्रिटिश सरकार का कई बार कोप झेलना पड़ा। मालवीय जी के ही प्रयास से 1909 में अंग्रेजी पत्र 'लीडर' का जन्म हुआ।
गंगा की धारा को रोक दिये जाने के विरूद्ध गंगा महासभा की ओर से व्यापक सत्याग्रह अभियान चलाकर मालवीय जी ने अंग्रेज सरकार को गंगा की अविरल धारा में जल प्रवाह बनाये रखने के लिए समझौता करने के लिए विवश कर दिया।
मालवीय जी जब विद्यालय में पढ़ते थे, तभी से वे एक विश्वविद्यालय की स्थापना का स्वप्न देखने लगे थे, जिससे भारत के युवक-युवतियों को उच्च शिक्षा के लिए विदेश न जाना पड़े। उन्होंने पहले इलाहाबाद में ही ऐसे विश्वविद्यालय की स्थापना का निश्चय किया, परन्तु बाद में निश्चय बदलकर काशी में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय की स्थापना की। देश वो मालवीय जी की सबसे बड़ी देन यह विश्वविद्यालय है। सन् 1904 में इसकी स्थापना के लिए जो स्वप्न देखा था, उसे मूर्त रूप देने के लिए गले में भिक्षा की झोली लेकर देश व्यापी दौरे पर निकल पड़े और जनसाधारण से लेकर देश के बड़ेबड़े राजा-महाराजाओं तथा सेठसाहूकारों के असीम एवं उदारतापूर्ण सहयोग से थोड़े ही दिनों में एक करोड़ रुपये जमा करके 4 फरवरी 1918 को काशी हिन्दू विश्वविद्यालय की स्थापना कर दी।